Tuesday, September 11, 2007

भेड़ चाल ...


मुए मुशर्रफ को लेकर कल लगभग पागलपन का रवैया देखकर एक बार फिर चैनल चरित्र की भेड़ प्रवृत्ति सामने आ गई। अमूमन पाकिस्तान से दो दो हाथ या क्रिकेट मैच को लेकर या फिर कभी वहां हिंसा के दृश्यों को लेकर ही न्यूज चैनलों के कैमरे उन्मादित होते हैं, लेकिन कल जिस तरह शरीफ की शराफत की जय जयकार और मुशर्रफ की मलानत हो रही थी ( मिशन के रूप में ) उसे देखकर ऐसा लगा कि कम से कम हिन्दी मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय खबरों को तवज्जो न देने की तोहमत से तो गंगा स्नान करने की ठान ली है। भई वाह ! क्या संपाकदकीय दृष्टि थी ... जिस बात को विदेश मंत्रालय तक पाकिस्तान का अंदरूनी मामला मानकर टालता रहा वहां हम खबर नहीं मिशन की तरह पिल पड़े, हां एक सवाल नजरअंदाज करना था ... या यूं कहें कि जवाब नहीं था ... कि क्या नवाज के गद्दी पर नवाजने से दोनों देशों में एका बढ़ जाएगी ... क्या कश्मीर समस्या का रातों रात समाधान निकल आएगा ? जाहिरा तौर पर इस सवाल का जवाब किसी का पास नहीं था। दरअसल मामला पाकिस्तान प्रेम का नहीं था, मामला था कुछ मनोहारी विजुएल्स का जिससे दर्शक खिंचते चले आएं ... लेकिन कमबख्तों ने देश लौटने के लिए फ्लाइट ही करीब करीब दोपहर की पकड़ी, सारा मजा किरकिरा हो गया, फिर भी चंद घंटों के इस पाकिस्तान प्रेम ने एक सवाल का जवाब एक बार फिर दे दिया है कि वाकई हम सब भेड़ हैं ... भीड़ से भटके नहीं ... और खो जाने के डर से ग्रसित

ऐसे में पत्रकारिता छोड़कर पान दुकान चलाना ज्यादा मुफीद रहेगा।

3 comments:

अनिल रघुराज said...

वाजिब सलाह है। लेकिन पान की दुकान खोलने पर दिन में बहुत मिले तो कुछ सैकड़े मिलेंगे, जबकि चैनल को हर दिन लाखों मिलते हैं। वैसे, भेड़चाल के बहाने ही सही, शरीफ को नवाज़े जाने से चैनल खबरों की तरफ मुड़े तो सही। बनते-बनते ऐसे ही बनता है सिलसिला और हमारे चैनल भी देरसबेर असली खबरों तक ऐसे ही पहुंचेंगे। भरोसा रखिए। शैशवकाल खत्म होगा।

अनुराग द्वारी said...

आमीन!! सर आपकी आशावदिता को प्रणाम ... चलिए मैं भी आपके साथ ऐसी ही कामना करता हूं

Aradhana said...

आखिर वाक्य काफी महत्वपूर्ण था। लेकिन जनाब पान की दुकान खोलना भी तो आसान नहीं।