Wednesday, August 31, 2011
शोषित और शोषक ...
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और लिख डाला संविधान ...
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और बना दी संसद ...
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और बन गए शासक ...
फिर एक दिन ...
संसद में बैठकर, संविधान के पन्ने पलटकर ... शाषक बन गए शोषक ...
और शोषित ... पड़ा रहा ...
उस एक दिन के इंतज़ार में !!
Saturday, August 20, 2011
ननिहाल गई बिटिया के लिए ...
तुम्हारी आंखों में ना जाने कितने रंग हैं ...
वो माहताब की मानिंद चमकते हैं ...
लेकिन जब बरसते हैं ... तो लगता है ... बादल इस दिल में बरस जाएंगे ...
कभी लगता है तुम्हारी आंखों में कोई चितेरा बसता है ...
नहीं तो क्या मुमकिन है इन आंखों से इतनी रंग बिरंगी तस्वीरें बनाना ...
कहीं दुनियां के सारे रंग तुमने अपनी आंखों में कै़द तो नहीं कर लिये ...
क्या बात है कि जब चलती हो ... तो लगता है उम्र का एक फासला मैंने तय कर लिया ...
तुम्हारी नन्हीं थपकी से सुकने-ए-सफहे खुद भर जाते हैं ...
कभी सोचता हूं ... बाबा के सामने तुम हो सिर्फ कद में हो छोटी ... ओ मेरी नन्हीं सी प्यारी बेटी
Sunday, May 15, 2011
उम्र और मां
तुमने कभी देखा नहीं ... सिलबट्टा तुम्हारे हाथों में उतर आया है ...
तुमने घर सहेजा ... दरारें पैरों में सिमट आई हैं ...
तुम्हारी ऊंगलियों से रोटियों ने नरमी कब की छीन ली ...
तुमने कभी महसूस नहीं किया ... मौसम के थपेड़े तुम्हारी आंखों में दिखते हैं ...
हमारी मुश्किलें ... तुम्हारे चेहरे में झुर्रियों की मानिंद जड़ गई हैं ...
दिन और रात में वक्त ना जाने कब तुम्हारे बालों की कालिख ले गया
गुड्डे-गुड़िया की उम्र तुमने गौहाल में सोकर और मोहल्ले जैसे परिवार को पालने में निकाल दी ...
तुम्हारे चेहरे की रंगत भूरी हो गई है
मां मेरी बूढ़ी हो गई है
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