Friday, July 12, 2013

मैं गांधी का हिन्दू हूं ...

"वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे,
पर दु:खे उपकार करे तो ये मन अभिमान न आणे रे।"

"सकल लोकमां सहुने वंदे निंदा न करे केनी रे,
वाच काछ मन निश्चल राखे धन धन जननी तेनी रे।"

"समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे,
जिह्वा थकी असत्य न बोले, परधन नव झाले हाथ रे।"

"मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे,
रामनाम शुं ताली रे लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे।"

"वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे,
भणे नरसैयॊ तेनु दरसन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे ॥"



नरसिंह मेहता की ये पंक्तियां गुजराती में हैं ... शायद मोदी जी बेहतर समझ पाएं ...
जब भी सुनता हूं, आंसू बरबरस आंखों का साथ छोड़ देते हैं, शायद यही वजह होगी कि ये भजन बापू की दिनचर्या का हिस्सा थे ...
मोदी जी, हम आपकी वजह से हिन्दू नहीं हैं ... पढ़िए और जानिए ... धर्म के मायने इस भजन के बहाने ...
ईश्वर का जन वही है जो दुसरे मनुष्य का दुःख समझ सकता है और दूसरों के दुःख में मदद करने को निम्न नहीं समझता है। वैष्णव जन वो है समस्त लोक के प्राणियों का आदर करता है, किसी की निंदा नहीं करता और मन, बोल,सोच सब में निश्छल है। ऐसे मनुष्य की जननी सचमुच धन्य है। ऐसे व्यक्ति ने स्वयं तृष्णा का त्याग किया है। पर-स्त्री माँ के सामान है उसके लिए। जीभ अगर थक भी जाए तो झूठ नहीं बोल सकता है  और दूसरे के धन को हाथ आने की लालसा नहीं होती है उसमें। इस इंसान के भीतर मोह माया का वास नहीं है और वैराग्य ही जीवन का सार है। राम नाम में विलीन है और तीर्थ स्थानों में वास है। ये मनुष्य न लोभी होते हैं, ना कपटी, काम क्रोध का त्याग किया है और ऐसे वैष्णव मनुष्य धन्य है, पूज्य हैं ।