Thursday, February 18, 2016

साथी कन्हैया के लिए खुला ख़त

प्रिय कन्हैया,
मुझे नहीं पता तुम जेल से कब बाहर आओगे, मुझे ये भी पता है कि धर्म में तुम्हारी आस्था नहीं है, फिर भी कोशिश है अपने तर्कों के साथ तुम्हारे साथियों को मनाने की ... समझाने की कोशिश करूं ...
सबसे पहले बता दूं कि बोली के लिए जेल का मैं पक्षधर नहीं हूं।
तुम यक़ीनन पुनर्जन्म में भरोसा नहीं रखते होगे, मैं डिस्क्लेमर पहले लगा दूं मैं रखता हूं ... गांधी का हिन्दू हूं, हर धर्म में आस्था है सबको प्रेम करता हूं।
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।
‘ जो कोई मेरी ओर आता हैं, चाहे किसी प्रकार से हो, मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।’
कई मनीषी हिन्दुत्व को लेकर, राष्ट्र को लेकर अपने विचार रख रहे हैं, उद्वेलित हो रहे हैं। वामपंथियों के अपने मत हैं, दक्षिणपंथियों की अपनी सोच ... मेरे जे़हन में करपात्री जी आते हैं जब वो कहते हैं प्राणियों में सद्भभावना हो ... वहां सिर्फ वामपंथ की तरह मज़दूरों की एकजुटता नहीं है या दक्षिणपंथ की तरह हिन्दू नहीं है। ये सोच कितनी व्यापक है, समग्र है। लेकिन चाहे वाम हो या दक्षिण वैचारिक मतभिन्नता को स्वीकार नहीं कर पाने की एक कमज़ोरी सी लगती है।
तुमने अपने भाषण के शुरुआत में सावरकर को हिन्दूवादी घोषित कर दिया, तुमने ये भी कहा कि उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, पर ये बताने से चूक गये कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और भाकपा जिसका इतिहास 1929 भी है, कोई 64 भी कहता है उस वक्त वाम विचाराधारा के लोगों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की आलोचना की और सुभाष चंद्र बोस की भी तीखी निंदा की।
साथी तुम्हारे भाषण को पढ़ा सुना, तुम्हें बाबा साहेब पर बहुत भरोसा है होना भी चाहिए ... फिर तुम ये भी जानते होगे कि इस देश की संस्थाओं का आधार वही संविधान हो जो बाबा साहेब और उनके सहयोगियों की कलम से निकला था, ऐसे में देश की सर्वोच्च अदालत ने जो फैसला दिया उसपर अगर कोई ये कहे कि "अफज़ल के हत्यारों को"" तो मेरा सवाल है कि कौन हैं हत्यारे ?? संविधान या सुप्रीम कोर्ट। ये तर्क है कि सर्वोच्च अदालत ने फैसले में लिखा है "सामूहित अंतकरण की सुंतष्टि", पेज 80 आख़िरी पैरा लेकिन साथी ये "सिलेक्टिव परसेप्शन" है पूरे पैरा में सारे सबूतों का भी ज़िक्र है और यकीनन ये सबूत जिरह में काफी साबित हुए।
दूसरा मुद्दा शिक्षा के बजट को लेकर है, कई लोगों ने इसे लेकर आंदोलन किया ... सही भी है शिक्षा बजट में सरकार ने कमी की है, लिहाज़ा मैं भी आपके साथ हूं। लेकिन क्या कभी आपके संगठन ने उन लोगों के ख़िलाफ आवाज़ उठाई जो मौलिक अनुसंधान के नाम पर चोरी से पर्चे छपवाते रहते हैं, जो चोरी को हक़ समझ कर बैठे रहते हैं?
आपके पूरे संबोधन में ग़रीबों के तौर पर सिर्फ महिलाओं और मुस्लमानों की बात हुई सही है ... लेकिन गरीबी क्या धर्म देखकर आती है, क्या हिन्दू, सिख, ईसाइयों में ग़रीब नहीं है?? मनुवाद से आप हिन्दुओं को संबोधित कर रहे हैं, क्या इस्लाम में सैय्यद- जुलाहे के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता रखता है?
पूंजीवाद एक पार्टी की जागीर नहीं है, लेकिन निशाने पर सिर्फ बीजेपी-संघ रखने से मुद्दा कमज़ोर होता है, जिसकी सरकार लंबे अरसे तक रही अगर वो पार्टी संवेदना जताने पहुंचे तो समझिए ये सियासत है और कुछ नहीं।
दूसरे विश्वविद्यालयों में आपके साथी नगालैंड, कश्मीर के लिए भी आज़ादी मांगने लगे, ये भी अभिव्यक्ति की आज़ादी है, ये भी इसी महान देश ने दी है।
तुमने बिल्कुल सही कहा कौन है कसाब, कौन है अफज़ल गुरू ?? क्यों ये शरीर में बम बांधकर मरने को तैयार हो जाते हैं, इस पर यूनिवर्सिटी में बहस नहीं होगी तो और कहां होगी, बिल्कुल होगी ... ज़रूर करो ... लेकिन जो सुरक्षाकर्मी संसद पर तैनात थे या हमलों में पराग जैसे लड़के जो 10 साल तक कोमा में रहते हैं उनकी क्या ग़लती थी?? कभी सोचा है उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या थी, उनपर हमला क्यों हुआ इसपर बहस के लिए मंच तैयार रखा है!!
ठीक है ब्राह्मणों ने बहुत अन्याय किया, उनको सज़ा देना लेकिन जब बाबासाहेब ने कहा कि आरक्षण पर 10 साल में समीक्षा होना चाहिए और उसीको मोहन भागवत 60 साल बाद दुहराएं तो वो दलित विरोधी कैसे हो जाते हैं?? कभी सवाल पूछा है कि देवयानी ख्रोबागडे के आईएएस पिता की बेटी को और आगे तक भी आरक्षण जारी क्यों रहे?? क्यों देश के औसत में 45 फीसदी गरीबी रेखा से नीचे हैं तो 5 फीसदी ब्राह्मण आबादी के 55 फीसदी ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों पर बातचीत नहीं होती ?? उनको आगे लाने की क्या योजना है ??
मनुवाद-मनुवाद कहने से समस्या ख़त्म तो नहीं होगी ...
कोई बच्चा ब्राह्मण-राजपूत-दलित कोख चुनता नहीं है, वो हिन्दू के घर में पैदा हो या मुस्लमान के घर इस पर उसका अधिकार नहीं है ... ऐसे में जन्म से कबतक उसकी सज़ा तय होती रहेगी, इस सवाल को सिर्फ संघी कहकर टाला नहीं जा सकता !!
समस्या तो है लेकिन समाधान सिर्फ नारों से तो नहीं होगा ... समग्र विकास के लिये मज़दूर भी ज़रूरी हैं, पूंजीवादी भी ... ब्राह्मण भी दलित भी, हिन्दू भी मुस्लमान भी
इसलिए करपात्री जी को याद करो ... मार्क्स या लेनिन से बड़ी बात कही है "प्राणियों में सद्भभावना हो " ... दास कैपिटल से वक्त मिले तो कबीर को पढ़ना एक दोहे में सब समेट लिया है
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय । मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥