मैं जिंदगी भर इतना जला इतना जला कि मरने के बाद जलाने की जरूरत नहीं मैं आंसुओं में इतना डूबा इतना डूबा कि अवशेष को गंगा में बहाने की जरूरत नहीं जिंदगी भर मेरी इज्जत दो गज कपड़े के पीछे भागती रही हो सके तो मेरी लाश पर एक कफन डाल आना
क्या हूं जफर अंधेरे उजाले की जंग में ... दिन सा मेरे वजूद में ये डूबता है क्या ...
ऐसे ही कुछ जिंदगी की शुरूआत की ... जिंदगी की लहरों से खूब गुत्थमगुत्था हुआ ... कई बार अव्वल आने के बाद बारहवीं में फेल होने ने जिंदगी के नए आयाम सिखाए पर ठहराव नहीं ... मैनजमेंट से लेकर बीएससी छोड़ने के बाद भोपाल से पत्रकारिता में ग्रेजुएशन ... फिर नाटकों से प्यार ... बाद मैं एमसीआरसी जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पोस्ट ग्रेजुएशना ... फ्री प्रेस, पीटीआई, स्टार न्यूज के बाद फिलहाल एऩडीटीवी में कार्यरत ... हॉकी में नेशनल और कई खेलों की खिदमत ... संगीत और चित्रकारी मे भी थोड़ी दखल ...
2 comments:
कविता नहीं, जल-जला है... किसी दिल जले आशिक की फरियाद है। लेकिन लगता है बात बहुत पुराने जमाने की है। अब तो इस तरह की कविताएं लुप्तप्राय हो चुकी हैं।
kya bat hai sir,aatma ko touch krti kavita hai,...
behad khoobsoorat!
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