Wednesday, October 31, 2007

अंतिम इच्छा ...


मैं जिंदगी भर इतना जला इतना जला
कि
मरने के बाद जलाने की जरूरत नहीं
मैं आंसुओं में इतना डूबा इतना डूबा
कि
अवशेष को गंगा में बहाने की जरूरत नहीं
जिंदगी भर मेरी इज्जत दो गज कपड़े के पीछे भागती रही
हो सके तो मेरी लाश पर एक कफन डाल आना

2 comments:

अनिल रघुराज said...

कविता नहीं, जल-जला है... किसी दिल जले आशिक की फरियाद है। लेकिन लगता है बात बहुत पुराने जमाने की है। अब तो इस तरह की कविताएं लुप्तप्राय हो चुकी हैं।

अजित त्रिपाठी said...

kya bat hai sir,aatma ko touch krti kavita hai,...
behad khoobsoorat!