Monday, November 5, 2007
उधार की पढ़ाई ...
डीएमके प्रमुख भी लगता है अंग्रेज इतिहासकारों की ही झूठन खाकर बड़े हुए हैं ... रामचरितमानस को उद्धृत कर सीता को राम की बहन बताना हास्यास्पद ही नहीं बल्कि मूर्खतापूर्ण है। मानस कई लोगों ने पढ़ी होगी क्या वो कोई भी ऐसी चौपाई या छंद बता सकते हैं?
सबसे पहले मैं ये साफ कर दूं कि मैं हिन्दू धर्म का पैरोकार नहीं हूं ... लेकिन ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें किसी राज्य के मुखिया को भला शोभा देती हैं?
कुछ दिनों पूर्व जेएनयू के छात्र संघ चुनावों में भी एक सज्जन ने भी भगवान राम के बारे में ऐसी ही टिप्पणी दी थी ... मेरा ऐसे लोगों से बस एक ही सवाल है कि क्या हम दस पंद्रह पीढ़ी पहले से अपने पूर्वजों के अस्तित्व का कोई भौतिक प्रमाण दे सकते हैं? समय के साथ साथ हर प्रमाण मिटता है और यहां तो घटना १७ लाख साल पुरानी है। राम के चरित्र जैसी घटनाएं भी वाचिक रूप में पीढ़ियों से चली आ रही हैं। राम सेतु जैसे कई प्रमाण सामने हैं जिनके माध्यम से उनकी प्रमाणिकता जुटाई जा सकती है ... लेकिन यहां तो लोग साक्ष्य नष्ट करके ही कहना चाहते हैं कि साक्ष्य उपलब्ध ही नहीं हैं।जिन इतिहासकारों की पढ़ाई पट्टी हम पढ़ रहे हैं उन तात्विक विद्वानों की जानकारी तो दो सहस्त्र वर्षों से ज्यादा नहीं है ... क्योंकि उससे पहले उनके लिए किसी विकसित सभ्यता का अस्तित्व था ही नहीं ... उन सभ्यताओं का भी नहीं जिन्हें खुद उन्होंने अपने हाथों से नष्ट किया है। बचपन से हमें पढ़ाया गया कि आर्य बाहर से आए थे हमने मान लिया .,.. प्रमाण कौन मांगता?
जिनके हाथों में पुरातत्व और इतिहास को बांचने का जिम्मा है वो आज भी विदेशी शिक्षा के ही आसरे हैं ... गाहे बगाहे लोग नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया का भी रोना रोते हैं ... लेकिन ये तो सोचना ही पड़ेगा कि हम नेहरू की किताब को प्रमाणिक मानें या फिर वाल्मीकि की रामायण और अपने वेद उपनिषदों को ...
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2 comments:
हवा को तलवार से नहीं काटा जा सकता, भावनाओं को तर्क से नहीं काटा जा सकता और मिथ को इतिहास से नहीं काटा जा सकता। इंसान के सामाजिक वजूद में दोनों के अलग-अलग ताखे हैं।
बिना सिर-पैर की बात करनें वालों की कमी नही है..लेकिन सत्य मिटाना आसान नही है...ऐसी बाते सुन कर मन को ठेस जरूर लगती है।...तरस आता है ऐसे लोगो पर जो बिना सोचे-समझे ऐसा अनर्गल प्रचार करते हैं।
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