Friday, April 7, 2017

एक था इदलिब ....


इदलिब, माफ करना ओमरान दाक़नीश की एलेक्स से दोस्ती हम नहीं समझे...
तुम चाहते थे, ओमरान को घर पर लाना,झंडे, फूलों और ग़ुब्बारों के साथ उसका स्वागत करना....
तुम चाहते थे उसे परिवार देना, भाई कहना ....
कैथरीन भी तो उसके लिये तितलियों और जुगनू पकड़ने बाग़ में दौड़ती ...
फिर स्कूल में ओमर के साथ तुम सब खेलते ...
उसे जन्मदिन पर बुलाते, अपनी भाषा सिखाते... कैथरीन नीला बनी देती ...
और हां, तुम उसे जोड़ना और घटाना भी सिखाते ...

लेकिन माफ करना एलेक्स ...
इदलिब ने रौंद डाले उसके ज़ख्म ...
अब वो कभी नहीं लौटेगा ...
गोले-गोलियों और एक जहाज़ ने सुर्ख गुलाब के बागीचे को सफेद कर दिया ...
कुछ तो गिरा जिसने इदलिब के बच्चों के इंद्रधुनषी रंग चुरा लिये ...
तुम लोगों की तस्वीरें छिपा कर रख ली है मैंने अपने ज़ेहन में ...
कल दुनिया को दिखाऊंगा कि दूब पर गिरी है गिर्या-ए-शबनम
मैदान के कोने में उदास पड़ी वो फुटबॉल ...
भागते हुए उस बाप को जिसकी गोद एक सांस से दौड़ लगा रहा था...
लेकिन यकाय़क उन जह़रीले बादलों ने हर ख्वाब का दम घोंट दिया ...
ये शामे-ए-वीरां पूछेगी सवाल इंसानियत से ...
क्यों इदलिब के जैतून के खेतों में भर दिया ज़हर ...
माफ करना सीरिया ... इदलिब को दुनिया अख़बार के पन्ने पर समेट चुकी है...
हम फिर हो जाएंगे बेख़बर ...
माफी एलेक्स तुम्हारी मासूम सी छोटी ख्वाहिश,
ये बड़ी दुनिया पूरा नहीं कर सकती ...

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