Sunday, April 21, 2013

बस एक बार !!




सड़क पर लौट आई है भीड़ ...
फिर एक बार ...

फिर एक बार ...
'आप' ... 'हाफ ' ... के बैनर तले, चीखे़ जा रहे हैं नारे ... गढ़ी जा रही हैं नई क़समें
माइक पर, स्टूडियो से व्यवस्था के ख़िलाफ रटी जा रही हैं गालियां ...
बटोरी जा रही हैं तालियां ...

फिर एक बार ...
बलात्कार पर गरमा गई है बहस ... सब उतर आएं हैं लड़ने ...
नई बुश्शर्ट, नई लिपस्टिक, नई एैनक के साथ
मोर्चाबंदी कर, लिए जा रहे हैं ... लड़ने के कई-कई संकल्प

फिर एक बार
अपनी सामूहिक ताक़त के अहसास तले रौंदी जा रही हैं, गलियां
मुठ्ठी भींचें हाथ, उत्तेजक नारों से खौल रहा है शहर का पारा ...

फिर एक बार ...
वायदा हुआ है ... कड़े कानून को बनाने का ...
मौजूदा कानूनों को अमल में लाने का
संसद में बैठकर अपनी पीठ थपथपाने का

फिर एक बार
उसी भीड़ में, उसी सड़क पर, उसी संसद में हैं कई आंखें ...
जो शहर में शिकार ढूंढ रही हैं ....

फिर एक बार ...
अस्पताल में पड़ी है गुड़िया ...
जिसके लिए बलात्कार, हैवानियत, नारे-कसमों के मायने समझना बेहद मुश्किल हैं ...
जब बड़ी होगी गुड़िया तो पूछेगी हमसे सवाल
क्यों नहीं सुनाई दी हमें उसकी सिसकी ...
अस्पताल में लेटे उसकी चुप्पी से हम क्यों रहे बेख़बर

फिर एक बार ...
जानवर बन जाएंगें हम ...
जब धीरे-धीरे ठंडी पड़ जाएगी अंदर की आग ...
जाने ऐसी कितनी गुड़ियाओं को रोज़ घूर घूर उम्र से पहले हम जवानी की दहलीज़ पर ले आते हैं ...

कानून बनाने से ये नज़रें बदलेंगी
मोमबत्ती की रोशनी में कभी हम ख़ुद को टटोलेंगे ...

बस एक बार ....

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