Wednesday, January 20, 2016

भूख ख़बर नहीं है ...




जो भूखे थे
वे सोच रहे थे रोटी के बारे में
जिनके पेट भरे थे
वे भूख पर कर रहे थे बातचीत
गढ़ रहे थे सिद्धांत
ख़ोज रहे थे सूत्र ....
कुछ और लोग भी थे सभा में
जिन्हौंने खा लिया था आवश्यकता से अधिक खाना
और एक दूसरे से दबी जबान में
पूछ रहे थे
दवाईयों के नाम ...
- कुमार विश्वबंधु

वो चुपचाप ऊंचे खंभे पर चढ़ गया क्योंकि कुछ लड़कों ने उसे कहा थाली में भरपेट खाना मिलेगा खंभे पर चढ़ जाओ ... फिर वो चुपचाप खंभे से उतर गया क्योंकि पुलिस वालों ने कहा थाली में भरपेट खाना मिलेगा खंभे से उतर जाओ।
अधनंगा था वो, भूखा-प्यासा ... लोग कह रह थे पागल है ...
वाकया मुंबई के परेल इलाके में हुआ ... वो परेल जहां कभी दर्जनों मिलें थीं, मज़दूर रहते थे। आज वहां एमएनसी दफ्तर, मॉल, पांच सितारा होटल हैं ... लोगों को रफ्तार देने मोनोरेल बन रही है, वो पागल उसी खंभे पर चढ़ा था... रोटी खाने।
टीवी पर बहस हो रही है, तमाम स्वनामधन्य संपादक रोहित से लेकर पाकिस्तान पर बहस कर रहे हैं, बातें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम दुनिया में संभावित मंदी पर भी हैं। बातें दलित बनाम ग़ैर दलित की हैं, रोहित के पक्ष में खड़ा रहने की होड़ है ... ऐसे में ये बात अप्रिय लगेगी फिर भी कहूंगा ... 28 साल का रिसर्च स्कॉलर इतना कमज़ोर है कि चंद दिनों के निलंबन से जान दे देता है??  इनके संगठन का नाम है अंबेडकर-पेरियार सर्किल संस्था ने याकूब मेमन की फांसी का विरोध किया, उस याकूब को जिसे बार बार इंसाफ के रास्ते मिले आधी रात में भी ... लेकिन उन्हें इंसाफ देने वाला कोई नहीं था जो मुंबई बम विस्फोट में मारे गये। कौन से बाबा साहेब कोई बताएगा क्या सीख थी उनकी ?? " शिक्षित बनो संघर्ष करो ".. फिर कोई रोहित से सवाल तो पूछे उसने संघर्ष का रास्ता क्यों नहीं चुना??
   इस देश में एक ही जात है, एक ही धर्म है जिसमें पैदा होने वाला शख्स हर वक्त शोषित होता है वो है ग़रीबी !!वो ग़रीबी जिसके वजह से वो पागल खंभे पर चढ़ गया !!
लेकिन भूख़ ख़बर नहीं है। भूख़ पर सवाल उठते हैं तो मजमा नहीं लगता मंडलियां नहीं जमतीं। संपादकों को स्वाभाविक सवाल नहीं दिखता। मन परेशान है अपनी थाली से नाराज़गी है। भूख पर सवाल होते तो मंदिर-मस्जिद नहीं होता, मंडल-कमंडल नहीं होता सर्वण-दलितों की एक जात होती, हिन्दू-मुस्लमानों में भेद नहीं होता, पाकिस्तान में बम विस्फोट में किसी के मरने से भी हम ख़ुश नहीं होते, कोई कसाब 25000 रुपये के लिए पाकिस्तान से आकर हिन्दुस्तान में गोलियां नहीं चलाता, सीरिया की भूख से आंसू ज़ारो-क़तरा बहते।
     कोई अंबेडकर, कोई आरएसएस, कोई कांग्रेस सर्कल इस कमबख़्त भूख की बात क्यों नहीं करती। स्मृतियों से कमबख़्त वो पगला अधनंगा भी नहीं जाएगा। बहुत आसान है कहना पागल वो हैं जिन्होंने उसे खंभे पर चढ़ाया या वो जो भरी थाली के नाम पर खंभे पर चढ़ गया।
    पर आप कीजिए मालिक ख़ूब बहस कीजिए देश-दुनियां की तमाम मुसीबतों पर सबको सुलझा दीजिए !! वो पगला कहीं दिखे तो उसे पकड़ लीजिए ख़ूब मारिये, साले ने मेरी नींद ख़राब कर दी। आप सब चद्दर तानिये आराम सो जाइये सपने में अंबेडकर आएं, गोलवलकर आएं या गांधी एक सवाल कीजिएगा ज़रूर धूमिल के ज़रिये पूछ रहा हूं क्या आज़ादी तीन थके रंगों का नाम होता है, या उसका कोई ख़ास मतलब भी होता है।
पता लगे तो मेरे साथी सुनील सिंह, सांतिया या मुझसे संपर्क कीजिएगा
बाक़ी की ख़बरों के लिए लुटियन ज़ोन है !!
”भूख है तो सब्र कर, रोटी नही तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दा”

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