Sunday, May 15, 2011

उम्र और मां


तुमने कभी देखा नहीं ... सिलबट्टा तुम्हारे हाथों में उतर आया है ...
तुमने घर सहेजा ... दरारें पैरों में सिमट आई हैं ...
तुम्हारी ऊंगलियों से रोटियों ने नरमी कब की छीन ली ...
तुमने कभी महसूस नहीं किया ... मौसम के थपेड़े तुम्हारी आंखों में दिखते हैं ...
हमारी मुश्किलें ... तुम्हारे चेहरे में झुर्रियों की मानिंद जड़ गई हैं ...
दिन और रात में वक्त ना जाने कब तुम्हारे बालों की कालिख ले गया
गुड्डे-गुड़िया की उम्र तुमने गौहाल में सोकर और मोहल्ले जैसे परिवार को पालने में निकाल दी ...

तुम्हारे चेहरे की रंगत भूरी हो गई है

मां मेरी बूढ़ी हो गई है

1 comment:

kirti said...

pata nai aaisa expression kahan se laate ho...tumhare saath itne saal bitane ke baad bhi lagta hai jaise aaisa bahut kuch hai jo tumhare baare mein samjhana baaki hai...har baar ke tarah is baar bhi meri aankho mein aanso hain....

kirti