Sunday, December 7, 2008

खबर में मैं ...



उस रात का गवाह
रात दस बजे के आस पास मुंबई सेंट्रल बुलेटिन की तैयारी कर रहा था ... तभी अचानक आज तक पर कैफे लियोपोल्ड में गोलियां चलने का फ्लैश देखा ... सुनील सिंह घर जाने की तैयारी में थे ... उनसे कहा सर चेक कर लीजिए ... तभी अचानक दीप्ति अग्रवाल का उल्लास जी के पास फोन आया ... वो वीटी स्टेशन पर अपने परिजनों को छोड़ने गई थीं ... उन्होंने बताया स्टेशन पर फायरिंग हो रही ... उल्लास जी उनसे जानने की कोशिश में थे ... कैफे लियोपोल्ड या वीटी? माहौल गरमाता जा रहा था ... मैंने सुनील जी को वीटी रवि जी को भी देखने को कहा ... तभी एक स्ट्रिंगर का फोन आया कि वाडीबंदर में एक टैक्सी में विस्फोट हुआ है ... सोचा जल्दी से वीटी स्टेशन के रात के विजुएल्स अपलिंक करवा दूं ... अजय निकल चुका था ... स्टेशन के पास ... उसका फोन आया ट्रेन नहीं चल रही है ... तभी अभिषेक सर का फोन आया मैं दफ्तर आ रहा हूं ...
मैंने उल्लास सर से कहा मैं ... वाडीबंदर निकल रहा हूं ... कैमरा मैन को साथ लेकर मैं निकल पड़ा ....

खौफनाक रात ...

वीटी स्टेशन के सामने से पुलिस वालों ने गुजरने नहीं दिया ... टाइम्स के पीछे वाली सड़क से हम जा रहे थे ... रात अजीब सी सर्द थी ... ११.१५ का वक्त होगा ... तभी अचानक दो पुलिसवालों ने मुझ पर पिस्तौल तान दी ... माइक निकाला ... आईकार्ड दिखाया ... तब जाकर आगे निकल पाया ... लेकिन तब तक अंदाजा हो गया था ... वो फ्लैश जेहन में घूम रहे थे ... खौफ की तस्वीर कुछ साफ हो रही थी ... वाडीबंदर में टैक्सी के पुर्जे देखे तो बारूद की ताकत का अंहसास हुआ ... टैक्सी में सवार तीन लोगों में कुछ बचा था ... तो टैक्सी का नंबर प्लेट और टैक्सी ड्राइवर की एक टांग ...
वहां से कुछ विजुएल्स लेकर निकला ... रास्ते में सेंट जार्ज अस्पताल था ... धर्मेन्द्र ने गुजारिश की थी पहले जेजे अस्पताल जाने की ... लेकिन मैंने सोचा सबसे पहले ... यहीं एक चक्कर मार लूं ... आखिर वाडीबंदर के सबसे नजदीक यही अस्पताल था ... अस्पताल में कोई और मीडियकर्मी मौजूद नहीं था ... लेकिन लोगों के गुस्से को देखते हुए अंदर कैमरा ले जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी ... फिर भी घायलों की तादाद के बारे में पता करने अंदर जाना जरूरी था ...
अस्पताल के अंदर घुसते ही खबर बड़ी हो गई ... फर्श पर खून था ... दायीं ओर कतार में इतनी लाशें को दो पल के लिए मेरे पैर वहीं जम गए ... बच्चे औरतें ... सब ...
फौरन बाहर आया ... लाशों की एक गिनती कर चुका था ... तब तक इक्का दुक्का लोगों के मौत की पुष्टि हुई थी ... दफ्तर फोन किया ... अजय को खबर बताई ... सारे लोग चौंक पड़े ... किसी को यकीन नहीं हो रहा था ... सबने मुझसे दुबारा देखने को कहा ... लेकिन जो मंजर मैंने देखा था उसमें चूक की गुंजाइश नहीं थी ... मामला सिर्फ आंकड़ों का नहीं था ... फिर फोनो का दौर शुरू हुआ ... थोड़ी देर बाद वापस अंदर जाने की हिम्मत जुटाई ... घायलों के बारे में मालूमात हासिल करनी थी ... वार्ड नंबर ३,५.७ ... कराहते हुए लोग ... पट्टियां ... कुछ घायल बगैर तीमारदारी के ...
वापस नीचे आया ... तभी अजय का फोन आया ... पीटीआई मरने वालों की संख्या ५० से ऊपर बता रही है ... चेक करो ... अब अंदर जाना थोड़ा मुश्किल हो चुका है ... आतंकियों के खुले आम घूमने की खबर वहां पहुंच चुकी थी ... फिर भी किसी तरह अंदर पहुंचा ... सारी लाशें अब एक पर्दे के पीछे सरका दी गई थीं ... वहीं दीवार की ओट से फिर अंदर जाना पड़ा ... एक पल को ऐसा लगा शरीर सुन्न हो रहा है क्योंकि पांव कई लाशों के ऊपर से गुजर रहे थे ... कई लाशें बुरी तरह क्षत-विक्षत थीं ... इस बार आंकड़ा ५० से ऊपर जाकर ठहरा ... बाहर आया दफ्तर को सूचना दी ... तब तक खबर आई गिरगांव एनकाउंटर की ... यहां पहुंचने तक सुनील जी भी वहां पहुंच चुके थे .... फिर शनिवार सुबह तक अस्पताल ... ताज ... दफ्तर ... यही रूटीन था ... इन आंकड़ों और पेशे की जरूरत के बीच कुछ स्पिलंटर मेरे दिल में भी चुभे रह गए ... जिन्हें अब निकालना जरूरी हो गया है ...

२६ नवंबर की रात मेरे लिए मुंबई की सबसे डरावनी रात थी ... इतना डर उस पिस्तौल या ताज के अंदर चल री गोलीबारी से भी नहीं लगा था ... इस शहर में कान शोर को सुनने के आदी हैं .... यहां का सन्नाटा कितना खौफनाक है ये २६ नवंबर को ही पता लगा ... गिरगांव चौपाटी के पास लहरों भी गुमसुम थी ... उस रात ने और आने वाली कुछ और रातों ने कुछ सोचने का मौका नहीं दिया ... लेकिन यकीन मानिए अब हर दिन हर रात वो चेहरे ... वो खून आंखों के सामने नाचता है ... तीन दिनों के बाद बहुत कुछ देखा ... टीवी पर बहस ... सुरक्षा में लापरवाही की सुर्खियां ... राजनीति का नंगा नाच ... सत्ता की डुगडुगी ... उसपर कुर्सी के लिए बेशर्मी का नाच नाचते राजनेता ...
६ दिसंबर को ही नारायण राणे की प्रेस कांफ्रेस में शिरकत की ... तमाम राजनेताओं को गरियाने के बीच एक बार उन्होंने भी शहर के हालात का जिक्र कर दिया ...
बेशर्मी की हद है ... राणे का जिक्र सिर्फ इसलिए कर रहा हूं कि वो रूठे ... साफ किया कि लाश पर भी राजनेताओं के लिए कुर्सी की अहमियत क्या होती है ... वैसे इस हमाम में कौन कौन नंगे हैं ... ये बताने की जरूरत नहीं ...
कुछ दिनों से अब कसाब का पोस्टमार्टम हो रहा है ... कहां से आया ... सबूत क्या हैं ... वो पाकिस्तानी है??
क्या हमें पाकिस्तान से लड़ाई करनी चाहिए ??? क्या युद्ध समाधान है ???
जेहन में ब्रेख्त की कुछ लाइनें घूम रही हैं ...

ये युद्ध जो आ रहा है ...
पहला युद्ध नहीं होगा ...
इससे पहले भी कई युद्ध लड़े जा चुके हैं ...

वाकई इससे पहले भी कई युद्ध लड़े गए ... नतीजा ??? कौन खुशहाल हुआ ... किसी शांति मिली ???...

ये सवाल कई बातों में उलझा देते हैं ...

खैर मैं जिक्र उस रात और आज का कर रहा था ...

भूल नहीं पा रहा हूं ... ट्रेन पर चढ़ते रात में दफ्तर से निकलते हर वक्त खटका रहता है ... शहर ने तीन बड़े हादसों से बचा लिया ... २६ जुलाई ... ट्रेन धमाके और अब ... क्या पता खबर लिखने वाले ये हाथ ... कुछ दिनों बाद खुद खबर बन जाएं ... या शायद नहीं ...

शायद मेरी तरह इस शहर ने कईयों को डरा दिया है ... मेरे फ्लैट के ऊपर ही सारस्वत जी का मकान है ... जो होटल ताज में कमांडो या आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए इस पर संशय है ... घरवालों का मातम ... नश्तर की तरह हर वक्त चुभता है ... बिल्डिंग के गेट पर एनसीपी ने उनकी बड़ी तस्वीर लगा रखी है ...

डर .... मातम ... कई सारी भावनाएं हैं ...
लेकिन इतना तय है आठ साल के करियर में पहली बार कोई खबर सिर्फ खबर नहीं रह गई है ...
साए की तरह ये मेरे साथ है ... हर वक्त ... हमेशा ...

5 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

हम लगातार आपकी रिपोर्ट्स पर आखें गराए थे.........

Unknown said...

At the outset, I am sorry for not posting my comment in Hindi. I wasnt in Mumbai when the terror striked the city. But could feel the trauma and the magnitude of the tragedy through non-stop reports on TV. My husband's voice echoes in my ears even now - "Mere Samne 25 dead bodies padi hain". Can only thank my (our) stars to be fortunate for the third time...in the process trying to find out answers as to will i be lucky enough during the times ahead....God only knows (or may be our "esteemed" politicians)
keats

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लगा आपको पढना ।

जयनगरा वाली said...

Aadmi ko torti nahi hai loktantrik paddhtiya keval pet ke bal usee jhuka deti hai dhire dhire Apahij (Rajkamal Choudhary)

Kuch dino pahle hi main ek dost ke sath baitah tha to baat hi baat main unhone kaha ki ab to had ho gayi hai yaar ... ab to aar ya par ki lariye ho ...............
to maine kaha ki kya yahi niyati hai ..........
to unka jabaw tha yaa ab kab tak dekhoge ....
such a nice report ..........

अभिषेक मिश्र said...

Vaastav mein koi khabar sirf khabar nahin rah jati hai.