Monday, February 1, 2010
ये अपमान है?
क्या वाकई पाक क्रिकेटरों का अपमान हुआ...?
यह बहस ज़ोर पकड़े, इससे पहले कुछ आंकड़े देख लीजिए… आईपीएल सीज़न-3 में 67 खिलाड़ी नीलामी के लिए बाज़ार में खड़े थे, लेकिन ख़रीदारों के पास जगह थी सिर्फ 13 की… जिम्बाब्वे, नीदरलैण्ड, बांग्लादेश, कनाडा - इन सभी देशों से एक-एक खिलाड़ी नीलाम होने के लिए मौजूद था... लेकिन किसी ने उन्हें नहीं खरीदा… ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड और श्रीलंका से भी बड़े-बड़े भारी-भरकम नाम नीलाम होने को तैयार थे, लेकिन इन देशों का सिर्फ एक-एक खिलाड़ी ही खरीदारों के बटुओं से पैसे निकलवाने में कामयाब हुआ...
ऐसे में क्या इन सबका अपमान हो गया…?
नीलामी के दिन ही हमारी एक रिपोर्टर, जो क्रिकेट में ज़्यादा दख़ल नहीं रखतीं, ने मुझसे पूछ लिया कि हमने पाकिस्तानी क्रिकेटरों का अपमान क्यों किया... जब मैंने ऊपर लिखे सारे आंकड़े उन्हें बताए, तो सारा माजरा उनकी समझ में आ गया, और उन्होंने एक अच्छा सवाल भी खड़ा किया - क्यों न मीडिया को सिर्फ पूरी बात दर्शकों को बता देनी चाहिए, और फैसला उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए कि वास्तव में पाकिस्तानी क्रिकेटरों का अपमान हुआ है...
दूसरे देशों की बात छोड़ दीजिए... जिस बाज़ार में भारतीय टीम का पूर्व कप्तान, अपने ही देश की अंडर−19 टीम के मौजूदा कप्तान और सितारों को पहचानता तक न हो, वहां किस क्रिकेट और किस प्यार की आस बंध सकती है… नहीं समझे... चलिए, बात को साफ करता हूं… उस नीलामी में मैं भी मौजूद था, और जब अंडर-19 टीम के मौजूदा कप्तान अशोक मनेरिया, और खिलाड़ी हर्शल पटेल व हरमीत सिंह को खरीदने की बात आई, तो अनिल कुंबले को पूछना पड़ा - यह खिलाड़ी क्या-क्या करते हैं...?
अब खुद ही फैसला कीजिए - क्रिकेट के लिए बड़ा अपमान क्या है... खिलाड़ी का खिलाड़ी को न जानना या चंद खिलाड़ियों का नहीं बिकना...
आईपीएल अमन की आस के लिए बनाया गया कोई प्लेटफॉर्म नहीं, मंडी है, जहां नफे-नुकसान के लिए खिलाड़ियों की बोली लगती है… अगर पाकिस्तान या किसी दूसरे देश से फ्रेंचाइजी मालिकों को खास प्यार या बैर होता, तो वसीम अकरम भी कोलकाता नाइट राइडर्स के बॉलिंग कोच नहीं बन पाते…
हो सकता है, आईपीएल पर सरकार ने कोई दबाव डाला हो… हो सकता है, फ्रेंचाइजी मालिकों ने सोचा हो कि उस घोड़े पर दांव लगाने से क्या फायदा, जो अस्तबल से ही न निकल सके… बात चाहे जो हो, अगर हमारी सरकार पाकिस्तान से फिलहाल बातचीत नहीं करना चाहती, तो उसकी अपनी वजहें हैं, जिन पर एक लंबी बहस हो सकती है… और रही बात, आईपीएल के सरकार से डरने की... यह बात आसानी से गले नहीं उतरती… कौन भूल सकता है सीजन-2, जब तमाम रस्साकशी के बावजूद पैसों की धौंस दिखाते हुए ललित मोदी आईपीएल को दक्षिण अफ्रीका घुमा लाए... सो, ज़ाहिर-सी बात है कि फ्रेंचाइजी के मालिकान भी पाकिस्तानी क्रिकेटरों को लेकर ज़्यादा उत्साहित नहीं थे… हां, यह सही है कि वे टी−20 क्रिकेट के मौजूदा विश्व चैम्पियन हैं, और सिर्फ 37 गेंदों में शतक लगाने का शाहिद आफरीदी का कारनामा भी सभी को याद है, लेकिन अगर आफरीदी के औसत पर नज़र डालें, तो समझ जाएंगे, क्यों उन पर पैसा लगाना किसी रिस्क से कम नहीं…
और वैसे भी... अगर कारोबारी सरकारी फरमान पर हामी भरते हैं तो बुराई क्या है… 26/11 में नुकसान उन्होंने भी उठाया था… पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ताज और ट्राइडेंट जैसे पांच-सितारा होटलों में बेगुनाहों को गोलियों से भूनने से पहले किसी का पर्स चेक नहीं किया था… उनके कारोबार पर भी महीनों तक इसका असर रहा...
यहां यह समझने की ज़रूरत है कि आईपीएल की इस नीलामी में देश के नुमाइंदे नहीं, घाघ बिजनेसमैन बैठे थे… और आईपीएल का मकसद प्यार बढ़ाना नहीं, पैसा बनाना है… फिर इस तरह का मुगालता पालने से क्या फायदा...
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