बहुत मुश्किल है पिता पर लिखना ....
बहुत मुश्किल है, उनके लिये कुछ लिखना जो कुछ नहीं कहते ...
भरे रहते हैं तालाब की तरह, नदी की तरह नहीं बहते ...
घरभर की छांव के लिए, जो रोज़ धूप सहते ...
दुनियाबी तार सप्तक में जो रोज़ नये स्वर गहते
पापा...
टेलिफोन पर आपकी धड़कने सुन नहीं पाता ...
स्मृतियां ले जाती हैं, उस कैनवास पर ...
नन्हीं हथेली से जब तौलता था आपकी थपकी ...
आपके साये से चिपकी रहती थी मेरी आंखें ...
कैसे आपकी कमीज़ से मेरे सौदे पर खुश रहते थे आप ...
कैसे मां की घुड़की पर, मैं मान जाता था आपकी अठन्नी से ...
रोज़ आपकी लड़ाई देखता रहता था ...
देखता था कि कैसे पिता कभी नहीं हारते ...
आपकी लड़ाई में, मैं अपनी जीत ढूंढ ही लेता था ...
अलसाई सुबह और बिस्तर की सिकुड़न में टटोलता हूं आपको ...
शब्दों के भीतर आप आसानी से नहीं आते ...
तस्वीरों में, फोन की घंटी में ...
देख नहीं पाता आपके पैरों का दर्द, कहते नहीं आप ज़रा सिर पर हाथ फिरा दो...
और भी कई यादें हैं, पूरे घर में यहां वहां बिखरी पड़ी हैं ...
जब रात में देखता हूं तारे, मेरे अकेलेपन के आकाश में आ जाते हैं आप ...
मेरी उंगलियों में आप धड़कने लगते हैं, मेरी आंखें में सारे मंज़र हो जाते हैं कैद
जहां आपकी आवाज़ टूटती नहीं, अनंत तक मेरे साथ होती है ...
ना होता है दुख, ना बेचैनी .... सिवाय आपके मेरे उस अनंत में
पापा
जाने क्यों, आपमें मुझे थोड़ी-थोड़ी मां भी नज़र आती है ...
मेरी ख़ामोशी में छुपकर आपका जहां रहता है ..
हर दिन वो मुझसे यही कहता है ...
आप हैं तो है मेरा वजूद!

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