हममें से ही किसी हाथ ने नोच लिया तुम्हें ...
हममें से कोई हाथ 40 घंटे तुम्हारे आंसू नहीं पोछ पाया ...
हम हाथ जोड़ें भी तो माफ मत करना बिटिया ...
आख़िर सदियों पहले ... हम में से ही किसी हाथ ने खींचीं थी तुम्हारे लिए 'मर्यादा रेखा' ...
क्या हूं जफर अंधेरे उजाले की जंग में ... दिन सा मेरे वजूद में ये डूबता है क्या ...
ऐसे ही कुछ जिंदगी की शुरूआत की ... जिंदगी की लहरों से खूब गुत्थमगुत्था हुआ ... कई बार अव्वल आने के बाद बारहवीं में फेल होने ने जिंदगी के नए आयाम सिखाए पर ठहराव नहीं ... मैनजमेंट से लेकर बीएससी छोड़ने के बाद भोपाल से पत्रकारिता में ग्रेजुएशन ... फिर नाटकों से प्यार ... बाद मैं एमसीआरसी जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पोस्ट ग्रेजुएशना ... फ्री प्रेस, पीटीआई, स्टार न्यूज के बाद फिलहाल एऩडीटीवी में कार्यरत ... हॉकी में नेशनल और कई खेलों की खिदमत ... संगीत और चित्रकारी मे भी थोड़ी दखल ...
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