गांधी जयंती ... दो फूल ... चंद गाने ... हो गई इतिश्री।
कई लोग गांधी पर बहस मुबाहिसे की मांग करते हैं लेकिन गांधी को महात्मा मानने वाले इसे दरकिनार कर देते हैं और यहीं से मिलता है गांधी विरोधियों को संबल। दरअसल सारी दिक्कत यहीं से शुरू होती है संस्कार ऐसे मिले हैं कि महात्माओं पर मीन-मेख आप निकाल नहीं सकते, लेकिन अगर गांधी को आप इंसान के रूप में सोचेंगे तो वाकई आपको उनकी शख्सियत बहुत बड़ी जान पड़ेगी।
कई लोगों को लगता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हरिपुर इंडियन नेशनल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के बावजूद गांधी का उनके प्रति विरोध गलत था, लेकिन क्या कोई इंसान किसी के विचारों को सही नहीं मानता या फिर उसे वो पसंद नहीं है तो उसका कद कम हो जाएगा?
कई समझदार भगत सिंह की मौत के लिए भी गांधी को जिम्मेदार मानते हैं ... मेरा उनसे एक ही सवाल है कि क्या एक व्यक्ति के लिए पूरे स्वतंत्रता संग्राम को ताक पर रखा जा सकता था ? यकीनन भगत सिंह बहुत बड़े क्रांतिकारी थे और अगर उन्हें जान ही बचानी होती तो वो बम फेंककर भाग सकते थे ... लेकिन उनका मकसद एक ही था धमाका !!!! फिर गांधी के जरिए भीख में मिला जीवन क्या उन्हें स्वीकार होता ?
देश भर को दिखाने के लिए हममें से कितने लोग आधे पैर तक धोती बांध कर घूम सकते हैं ... कौन देश, उसूलों और न्याय की खातिर अपने बेटे तक का पक्ष लेने से चूक सकता है .... कौन आजादी के जश्न में भी बंगाल के सुदूर गांव में जाकर हिंसा की आग बुझा सकता है ... कौन गांधी की आत्मकथा जैसी सच्चाई को लिखने का साहस कर सकता है ...
अगर आप में से कोई तो मेरे लिए आप भी महात्मा हैं ...
और अगर नहीं तो कृप्या गांधी को कोसने से पहले अपने गिरेबान में झांक लें तो आप ये जरूर मानेंगे कि गांधी महात्मा न सही एक बहुत बड़ी शख्सियत तो जरूर थे।
6 comments:
अनुराग जी, पब्लिक डोमेन में आने के बाद कोई व्यक्ति महज व्यक्ति नहीं रह जाता। वह एक सार्वजनिक प्रतीक बन जाता है। इसी प्रतीक की रक्षा के लिए भगत सिंह ने जीने के बजाय फांसी पर झूल जाना पसंद किया था। व्यक्ति के रूप में यकीनन गांधी महान रहे होंगे, लेकिन तलाश इस बात की की जानी चाहिए कि गांधी ने जिस आंदोलन की अगुआई की, उसमें क्या खामियां रह गई थीं कि आज हम दलाली की राजनीति के दलदल में धंसे हैं, सारी मशीनरी देश की जनता को अपनी प्रजा समझती है। वर्तमान को अतीत की चीड़फाड़ के बिना नहीं समझा सकता। और इतिहास एक दिन महात्मा गांधी का भी हिसाब-किताब करेगा। उस दिन शायद उनकी धोती का स्वांग भी खुलकर सामने आ जाएगा।
बिल्कुल ठीक है सर लेकिन सार्वजनिक प्रतीक के पीछे भी होता आदमी ही है ... एक सर्जन तब तक ढंग से चीर फाड़ नहीं कर सकता जब तक उसे पूरे शरीर का ज्ञान न हो ... इसलिए गांधी का ऑपरेशन करने वालों को पहले खुद भी उनके शरीर को जानने का माद्दा रखना होगा।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी और शहीद ए आजम भगत सिंह जैसे लोग कभी कभी धरती पर पैदा होते हैं। बल्व की रोशनी का महत्व है रात में लेकिन वह सूर्य की ऱोशनी का विकल्प नहीं हो सकता। उसी प्रकार तर्क वितर्क के सहारे कुछ भी कहा जा सकता है लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौर में जो भूमिका गांधीजी और शहीद ए आजम ने निभाई उसे नकारात्मक शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है।
आदरणीय,
आपके तीनों पोस्ट पढ़े, लेकिन किसी का स्तर वो नहीं लगा जो अनुराग द्वारी का है। थोड़ा और मथें, और तब लिखें, बातें थोड़ा और गंभीर और लंबे फलक वाली निकलेंगी। आपसे उम्मीदें ज्यादा हैं क्योंकि आप अनुराग द्वारी हैं।
सस्नेह, सादर।
फिलहाल इस पोस्ट पर कोई प्रतिक्रिया देने से पहले बधाई देना चाहूंगा कि तुमने अपना कोना बनाया। पहले कभी तुम्हारी लिखी चीजों से साबका नहीं पड़ा इसलिए देखकर अच्छा लगा कि चैनल के बंधे बंधाए फार्मेट से बाहर भी कुछ कुछ करने लगे हो। शायद इसलिए भी अच्छा लगा क्योंकि दिल्ली में रहते हुए नौकरी से बाहर की जो सक्रियता कभी तुममें पाई जाती थी वो फिर से दिखने लगी..उम्मीद है ये कवायद यूं ही चलती रहेगी।
pichhale dino to aap ne jaise blog par likhana hi band kar diya tha par naye maah ki shuruaat hamesha ki tarah saargarbhit tarike se hiuyee hai.
Gandhi ji ke deshkaal ko nazar andaz karke aaj unake vicharon, nirnayon aur kadamo par ungaliyan uthana saral hai.
Anil ji ne to swayam gandhi ji par likha hai nishchit hi ve us kaal se parichit honge.
Hamare se chook yah ho gayii ki maatra gandhiji ki hi nahin varan sabhi senaniyon ke sarajanik jiwan ki achchhi baton ko chhodkar ham ne dhool main chhipi huyee unaki insani kamiyon ko hi dekha.
shayad apni kamiyon ko chhipane ka yahi achchha tarika bhi hai.
is hindi blog par devnagari lipi main na likhane ke liye maf karen.
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