18 मई को मिड डे के अंक में प्रकाशित लेख में कहा गया था कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईके सब्बरवाल के बेटे को व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के सीलिंग अभियान से लाभ पहुंचा है। इस मामले में हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अखबार के संपादक और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। अदालत ने 20 अगस्त को समाचार पत्र अवमानना मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि जस्टिस सब्बरवाल के बेटे ने मॉल डेवलपर्स के साथ गठजोड़ किया था। मॉल डेवलपर्स को जस्टिस सब्बरवाल के कार्यकाल के दौरान सीलिंग मुहिम से फायदा हुआ था। उसके बाद 19 मई का अंक भी कोर्ट में पेश किया गया। उस अंक में कार्टूनिस्ट इरफान खान ने जस्टिस सब्बरवाल पर एक कार्टून बनाया था। बाद में हाईकोर्ट ने कार्टूनिस्ट को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
और अब हाईकोर्ट ने 'मिड-डे' अखबार के संपादक, प्रकाशक, स्थानीय संपादक और कार्टूनिस्ट को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस लेख ने न्यायपालिका की छवि को ठेस पहुंचाई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक 'लक्ष्मण रेखा' निर्धारित कर रखी थी, अखबार ने इस रेखा को पार कर दिया। दोषी करार दिए पत्रकारों की सजा के बारे में कोर्ट 21 सितंबर को फैसला सुनाएगा।
और अब हाईकोर्ट ने 'मिड-डे' अखबार के संपादक, प्रकाशक, स्थानीय संपादक और कार्टूनिस्ट को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस लेख ने न्यायपालिका की छवि को ठेस पहुंचाई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक 'लक्ष्मण रेखा' निर्धारित कर रखी थी, अखबार ने इस रेखा को पार कर दिया। दोषी करार दिए पत्रकारों की सजा के बारे में कोर्ट 21 सितंबर को फैसला सुनाएगा।
मैं कतई ये नहीं कहना चाहता कि अखबार या संचार माध्यम अपनी सीमाओं का उल्लंघन करें ... लेकिन देश की अदालतों का जो तानाशाही रवैया है उसपर लगाम कौन लगाएगा ... बंबई हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज कुछ दिनों पहले ये कहते हुए सुने गए कि पांच करोड़ की रकम लेकर भी वो अपनी बेटी के लिए घर नहीं खरीद पाए, क्योंकि बिल्डर उनसे ब्लैक में पैसे मांग रहा था ... क्या उन्हें ये बात नहीं पता थी कि ये मामला वो खुद कोर्ट में उठा सकते थे ... ज्यूडिशियल एक्टिविज्म अपने घर से क्यों नहीं शुरू कर सकते ... ये और बात है कि नागपुर में 102 करोड़ में बिकी इनकी जमीन भी सवालों के घेरे में है लेकिन इस मामला पर सरकार और जनता यहां तक की मीडिया भी चुप है ... आखिर अदालत से पंगा कौन ले। लगता है आज भी जज खुद को पंच परमेश्वर समझते हैं ... लानत है ऐसी व्यवस्था ऐसी अदालत पर कि उनके खिलाफ जबान खोलना हिमाकत बन जाए ... कौन नहीं जानता कि न्यायपालिका में भी जड़ तक भ्रष्टाचार भरा हुआ है ... कोई जज बिना देखे देश के राष्ट्रपति के नाम वारंट जारी कर देता है तो ये कह कर उसका बचाव किया जाता है कि भई उसके पास इतना काम है कि वो रोजाना हर कागज देख नहीं सकता ... फिर तो साहब ये तर्क हर भ्रष्ट्र पुलिसवाले हर भ्रष्ट्र नेता पर हर भ्रष्ट कर्मचारी पर लागू होता है, क्योंकि आजकल फुर्सत किसके पास है? ऐसे में अदालतों की लक्ष्मण रेखा इतनी सख्त क्यों ... कोई जज गीता को राष्ट्र ग्रंथ बता दे तो भी आप संभल कर बोलिए ...
मामला अदालत की अवमानना का हो जाएगा ...
कोई जज कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो अदालत के चौहद्दे में उसे माईलॉर्ड ही कहिए ...
जब इनको ज्यूडिशियल काउंसिल में बांधने की बात चले तो अदालत के कामों में हस्तक्षेप की बात कर ये पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं ...
कुल मिलाकर लोकतंत्र के अंदर ये एक ऐसी तानाशाही है जिसके विरोध का अधिकार न सरकार के पास है और न ही जनता के ... आखिर क्यों कोई जज या न्यायपालिका से जुड़ा व्यक्ति भ्रष्ट हो तो उसके खिलाफ खबर नहीं छप सकती ... जहां तक कार्टूनिस्ट का सवाल है तो उसकी कूची को रोकना अभिव्यक्ति की हत्या जैसा है ... आखिर क्यों काले कोर्ट वालों से कोई ये नहीं पूछ सकता कि 3 लाख लोगों को इंसाफ कब मिलेगा (जिनके मामले उनके पास लंबित हैं) ... सरकार और व्य़वस्था को तो ये हर वक्त कठघरे में खड़ा करते हैं और जब खुद की बात आती है तो संसाधनों की कमी का रोना रोते हैं ....
इसलिए मैं पुरजोर तरीके से इस तानाशाही की मुखालफत करता हूं .... कोई मानता है तो माने इसे अदालत की अवमानना !!!!
आजाद देश में आखिर इस चौहद्दी से भी आवाज तो आए