
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और लिख डाला संविधान ...
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और बना दी संसद ...
शोषितों के लिए ...
एक दिन उठे वो ...
और बन गए शासक ...
फिर एक दिन ...
संसद में बैठकर, संविधान के पन्ने पलटकर ... शाषक बन गए शोषक ...
और शोषित ... पड़ा रहा ...
उस एक दिन के इंतज़ार में !!